बिहार विधानसभा चुनाव के पहले आरक्षण का मुद्दा बिहार में गर्मा गया है. बीते 4 जून को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव नेता ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 2 पन्ने का पत्र लिखा था, जिसमे महागठबंधन सरकार में बढ़ाई गई 65% आरक्षण सीमा को 9वीं अनुसूची में शामिल कराने का जिक्र किया गया था. चार दिन बीतने के बाद भी अब तक सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिला.
'इस छोटी सी मांग को पूरा नहीं कर सकते'
अब जवाब नहीं मिलने पर तेजस्वी यादव की ओर से एक प्रेस नोट भेजा गया है, जिसमें चैलेंज किया गया है कि इस छोटी सी मांग को पूरा नहीं कर सकते हैं तो विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए देखिए कैसे हम इसे लागू करते हैं. तेजस्वी यादव के जरिए आरजेडी के व्हाट्सएप ग्रुप पर जारी किए गए प्रेस नोट में उन्होंने लिखा है, "क्या नीतीश जी ने मेरे पत्र का जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि उनके पास जवाब नहीं है अथवा वो आदतन ऐसा करते है या अधिकारी उन्हें पत्र दिखाते नहीं है?"
उन्होंने आगे लिखा, "सामाजिक न्याय का ढोल पीटने वाले ऐसे दल जिनके बलबूते मोदी सरकार चल रही है वो हमारी सरकार के जरिए बढ़ाई गई 65% आरक्षण सीमा को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने में असफल क्यों है?"
एनडीए के घटक दलों के नेताओं पर हमला
तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे को लेकर एनडीए के सभी घटक दलों के बड़े नेता को भी घसीटा है और लिखा है, "मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा को दलित, आदिवासी, पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्गों की इस हकमारी के खिलाफ आरक्षण पर मुंह खोलना चाहिए सिर्फ कुर्सी से चिपके रहने के लिए राजनीति नहीं होती है."
उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री से ये सब लोग इस छोटी सी मांग को भी पूरा नहीं करा सकते हैं, तो इनकी अपनी राजनीति और ऐसे गठबंधन में रहना धिक्कार है. अगर नीतीश कुमार प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के सामने इस विषय पर कुछ बोलने में असमर्थ हैं तो उन्हें विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाना चाहिए फिर देखिए कैसे हम इसे लागू कराते हैं