रमजान का छठवां रोजा है खास, रोजेदारों को देता है ईमानदारी और फरमाबर्दारी की सीख - AWAM AUR KHABAR

BREAKING

रमजान का छठवां रोजा है खास, रोजेदारों को देता है ईमानदारी और फरमाबर्दारी की सीख

 



इस्लामिक (हिजरी) कैलेंडर के मुताबिक रमजान साल का नौवां महीना होता है जोकि शाबान के बाद आता है. साल में पड़ने वाले 12 महीनों में रमजान को सबसे पवित्र (पाक) माना जाता है. रमजान में रोजा रखने का महत्व है. इसे रहमत, बरकत और मगफिरत का महीना कहा जाता है. दुनियाभर के मुसलमान इस पूरे महीने रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करते हैं. रमजान में फज्र की नमाज से पहले सहरी की जाती है और इसके बाद शाम में मगरिब की नमाज से पहले रोजा खोला जाता है.


पाक महीने रमजान का इस्लाम में महत्व इसलिए भी और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी महीने पैगंबर साहब को अल्लाह से कुरान की आयतें नाजिल हुई थी. इसलिए इस महीने रोजेदार न सिर्फ रोजा रखते हैं बल्कि अधिक से अधिक अल्लाह की इबादत करते हैं और नेकी से जुड़े काम करते हैं. रमजान का पहला रोजा 2 मार्च को रखा गया था और आज यानी 7 मार्च को रोजेदारों ने छठवां रोजा रखा है. साथ ही आज के लिए रमजान के पहले जुमे की नमाज भी अदा की जाएगी. आइये जानते हैं क्या है छठे रोजे का महत्व.

ईमानदारी और फरमाबर्दारी की सीख है छठवां रोजा

पवित्र कुरान के 25वें पारे की सूरह शूरा की 43वीं आयात में जिक्र है कि- ‘व लमन सबरा वगफरा इन्ना ज़ालिका लमिन अज़मिल उमूर’. यानी जो सब्र और रहम करने वाला है वह बुलंद मर्तबे और गरिमा वाले हैं. इसका मतलब साफ है कि मुकम्मल ईमानदारी और अल्लाह की फरमाबर्दारी के साथ रखा गया रोजा ही रोजेदारों की असली पहचान है.

जज्बा-ए-रहम पाकीजा दौतल और जज्बा-ए-सब्र रोजेदारों की रूहानी ताकत है. इसलिए रमजान के पाक महीने में जो रोजेदार सब्र, संयम, ईमानदारी और दया की कसौटी में खरा उतरता है वह अल्लाह का रहमत पा लेता है.

Pages