मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले का 30 हजार से अधिक परिवारों को उजाड़कर एशिया का सबसे बड़ा नगरीय विस्थापन होगा - AWAM AUR KHABAR

BREAKING

मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले का 30 हजार से अधिक परिवारों को उजाड़कर एशिया का सबसे बड़ा नगरीय विस्थापन होगा

 




जहां बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं, वो मकान जिनकी दीवारों पर सालों की मेहनत और यादें बसी थीं, वो दुकानें जहां सुबह से शाम तक चाय की चुस्कियों में जिंदगी घुलती थी, अब ये सब इतिहास बनने वाला है. मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले का मोरवा नगर जल्द ही नक्शे से मिटने जा रहा है.


NCL की नई परियोजना के लिए मोरवा को पूरी तरह खाली कराया जाएगा. इसके चलते 22 हजार इमारतों को ढहाया जाएगा और करीब 30 हजार परिवारों को विस्थापित किया जाएगा. यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा नगरीय विस्थापन होगा. प्रशासन ने इसे एशिया का सबसे बड़ा ‘शहरी पुनर्विकास’ बताया है, लेकिन स्थानीय लोग इसे 'घर उजड़ने की कहानी' कह रहे हैं.




मोरवा की मिट्टी से जुड़े हैं अरमान
करीब चार दशक से बसे इस शहर की आबोहवा में लोगों की यादें, संघर्ष और सपने रचे-बसे हैं. लेकिन अब सब कुछ बदलने वाला है. NCL की कोल परियोजना के विस्तार में मोरवा की पूरी जमीन शामिल है. ड्रोन सर्वे और प्लानिंग पूरी हो चुकी है. नोटिस की प्रक्रिया शुरू हो गई है और अब प्रशासन, NCL और शहरी विकास विभाग मिलकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि लोगों को नई जगह बसाया जा सके.

टूटेंगे कॉलेज, अस्पताल, मंदिर और मस्जिदें
सिर्फ घर ही नहीं, इस विस्थापन में मोरवा का पूरा सामाजिक ढांचा चकनाचूर हो जाएगा. 4 कॉलेज, 20 स्कूल, कई अस्पताल, मंदिर और मस्जिदें…सब ध्वस्त होंगे. यहां की 5 हजार से ज्यादा दुकानें भी हटाई जाएंगी. सोचिए, एक पूरे शहर का बाजार खत्म हो जाएगा.

क्या नया शहर भर पाएगा पुराने घाव?
प्रशासन का दावा है कि विस्थापितों को बेहतर सुविधाओं से युक्त नया शहर मिलेगा. मुआवजा, प्लॉट और पुनर्वास का वादा किया जा रहा है. लेकिन सवाल यह है कि क्या नए मकान में वो अपनापन होगा जो पुराने घर में था? क्या नई कॉलोनी में वो पड़ोसी मिलेंगे जो हर दुख-सुख में साथ थे?

'कभी सोचा न था यूं छोड़ना पड़ेगा'
कई स्थानीय नागरिकों का कहना है कि उन्होंने पूरी ज़िंदगी इसी जमीन पर बिताई. अब अचानक उन्हें कहा जा रहा है कि यह जगह छोड़ दो. “हमने यहां अपने बच्चों को पाला, जीवन की कमाई से घर बनाया. कभी सोचा न था कि एक दिन सरकारी आदेश पर सब कुछ छोड़ना पड़ेगा,” एक बुजुर्ग की आंखों में आंसू छलक आए.

विकास की कीमत इंसानियत से ज्यादा?
मोरवा का विस्थापन एक बड़ा सवाल भी खड़ा करता है, क्या विकास की रफ्तार इतनी जरूरी है कि इसके लिए हज़ारों लोगों की जिंदगी उखाड़ दी जाए? क्या सरकार और कंपनियां उस दर्द को समझ पाएंगी जो एक घर उजड़ने पर होता है? मोरवा अब धीरे-धीरे इतिहास बनने जा रहा है. लोग अपना सामान नहीं, अपनी जड़ें समेट रहे हैं. नए शहर में वे फिर से जिंदगी बसाएंगे, लेकिन वो पुराना मोरवा शायद अब केवल यादों में बचेगा

Pages