बिहार की राजधानी पटना में प्रदर्शन करने के लिए राहुल गांधी पहुंचे तो - AWAM AUR KHABAR

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बिहार की राजधानी पटना में प्रदर्शन करने के लिए राहुल गांधी पहुंचे तो

 





अब जगह गाड़ी में कम थी या दिल में, ये तो राहुल गांधी जाने लेकिन पटना में जो हुआ उसने साफ कर दिया कि कन्हैया कुमार अभी इतने बड़े नहीं हो पाए हैं कि वो अपने सबसे बड़े नेता के साथ खड़े हो सकें और पप्पू यादव अभी उतने कांग्रेसी नहीं हो पाए हैं कि कांग्रेस के रथ पर सवार हो सकें...क्योंकि बिहार में न तो कन्हैया कुमार किसी परिचय के मोहताज हैं और न ही पप्पू यादव. कन्हैया आधिकारिक तौर पर कांग्रेसी हैं और पप्पू यादव ने खुद को कांग्रेसी घोषित कर रखा है. इसके बावजूद जब बिहार की राजधानी पटना में प्रदर्शन करने के लिए राहुल गांधी पहुंचे तो उनके सुरक्षाकर्मियों ने इन दोनों को ही धकियाकर उस गाड़ी से उतार दिया, जिस पर राहुल सवार थे.


सवाल है कि क्यों. क्या वजह सिर्फ ये थी कि जिस गाड़ी पर राहुल गांधी सवार थे, उसपर खुद तेजस्वी यादव भी मौजूद थे. अब राहुल गांधी अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं. सियासी शब्दों में कहें तो कांग्रेस के आलाकमान हैं. और यही हाल तेजस्वी यादव का भी है. आरजेडी के आलाकमान तो वही हैं. और तेजस्वी से कन्हैया कुमार और पप्पू यादव, इन दोनों की अन-बन किसी से छिपी नहीं है.




याद करिए 2019 का लोकसभा चुनाव. तब कन्हैया सीपीआई में हुआ करते थे. बेगुसराय से उम्मीदवार भी थे. और सीपीआई का आरजेडी के साथ गठबंधन भी था. इसके बावजूद तेजस्वी यादव ने कन्हैया कुमार के खिलाफ उम्मीदवार दिया और नतीजा ये हुआ कि न कन्हैया जीते और न तेजस्वी के तनवीर हसन और बाजी मार ले गए गिरिराज सिंह.

कन्हैया के साथ सीधे तौर पर नहीं दिखे हैं तेजस्वी

ये तेजस्वी और कन्हैया के बीच के द्वंद्व का चरम था, जिसमें कन्हैया के कांग्रेसी बनने के बाद भी कोई कमी नहीं आई. न तेजस्वी कभी सीधे तौर पर कन्हैया के साथ दिखे और न ही कन्हैया कभी तेजस्वी की तारीफ करते नजर आए. लेकिन 2025 के चुनाव के लिए जो गठबंधन बना है, उसमें कन्हैया तेजस्वी पर नरम दिखे और जब मुख्यमंत्री चेहरे पर सवाल हुआ तो कन्हैया ने पिछले दिनों ही साफ कर दिया कि तेजस्वी यादव के चेहरे पर कोई भ्रम नहीं है.

इसके बावजूद जब 9 जुलाई को कन्हैया कुमार ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के लिए बनाए गए साझा रथ पर चढ़ने की कोशिश की तो उन्हें मायूसी ही हाथ लगी क्योंकि सुरक्षकर्मियों ने उन्हें फटकने तक नहीं दिया.

पप्पू यादव और लालू यादव की दोस्ती-दुश्मनी की कहानी जगजाहिर

पप्पू यादव के साथ भी यही हुआ. पप्पू यादव और लालू यादव की दोस्ती और दुश्मनी की कहानी जगजाहिर है. जब दोनों में दोस्ती थी तो पप्पू ने वो दोस्ती निभाई जिसकी मिसाल दी जाती है. और अब जब दुश्मन हैं तो तल्खी दिखती है, जिसमें दोस्ती की गुंजाइश बरकरार रहे. इसी गुंजाइश के लिए पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल भी हुए, टिकट की कोशिश भी की. और जब टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनाव जीतकर, तेजस्वी की उम्मीदवार बीमा भारती को हराकर सांसद बन गए और फिर से कांग्रेस के सुर में सुर मिलाने लगे. लेकिन शायद तेजस्वी से उनके सुर तो अभी नहीं ही मिल रहे हैं, तभी तो जब राहुल गांधी पटना पहुंचे तो उनकी गाड़ी पर से पप्पू यादव को भी उतार दिया गया.

अब कहने वाले कह सकते हैं कि जगह कम थी, लिहाजा बड़े नेता ही मौजूद थे या कुछ चुनिंदा लोगों की ही व्यवस्था हो सकती थी. लेकिन वीडियो इस बात की गवाही देने के लिए साक्ष्य के तौर पर मौजूद हैं, जिनमें साफ-साफ दिखता है कि उस गाड़ी पर वो लोग भी मौजूद हैं, जिन्हें आम तौर पर कोई पहचानता भी नहीं है और वो सुरक्षाकर्मी भी नहीं है.

तेजस्वी के साथ संबंधों को लेकर जोखिम नहीं ले सकते राहुल गांधी

ऐसे में घूम-फिरकर सवाल आ जाता है राहुल गांधी पर कि उनकी मौजूदगी में उनके दो बड़े नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार क्यों हुआ...क्या इसकी सिर्फ एक वजह है कि तेजस्वी यादव इन दोनों ही लोगों को व्यक्तिगत तौर पर पसंद नहीं करते हैं और राहुल गांधी बिहार में तेजस्वी के साथ अपने संबंधों को लेकर कोई जोखिम नहीं ले सकते हैं. क्या पहले कन्हैया और फिर पप्पू यादव को राहुल गांधी की गाड़ी से राहुल गांधी की सहमति से ही दूर रखा गया ताकि तेजस्वी नाराज न हों...और गठबंधन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े...

ये बहुत हद तक मुमकिन है कि एक बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए छोटी-छोटी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं. और कन्हैया-पप्पू को गाड़ी से दूर रखना कोई इतनी भी बड़ी बात नहीं है...लेकिन अगर ऐसा करना था, अगर यही होना था तो कन्हैया और पप्पू यादव को अकेले में समझाया जा सकता था, बताया जा सकता था, बड़ी लड़ाई के लिए समझौता करने को तैयार किया जा सकता था. वो मान भी जाते, उस गाड़ी के पास फटकते भी नहीं...भीड़ का बहाना भी बन ही जाता...और उनकी सार्वजनिक छवि को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. लेकिन गाड़ी के पास पहुंचकर भी वहां न पहुंच पाना और इस पूरे वाकये का वीडियो में कैद हो जाना कन्हैया कुमार और पप्पू यादव की राजनीति को बहुत हद तक कमजोर करेगा. दोनों नेता चाहे जो तर्क दें, अपने नेता के बचाव में चाहे जो सफाई पेश करें...लेकिन वो वीडियो तो गवाह हैं हीं और हमेशा ही रहेंगे.





























































































































































































अब जगह गाड़ी में कम थी या दिल में, ये तो राहुल गांधी जाने लेकिन पटना में जो हुआ उसने साफ कर दिया कि कन्हैया कुमार अभी इतने बड़े नहीं हो पाए हैं कि वो अपने सबसे बड़े नेता के साथ खड़े हो सकें और पप्पू यादव अभी उतने कांग्रेसी नहीं हो पाए हैं कि कांग्रेस के रथ पर सवार हो सकें...क्योंकि बिहार में न तो कन्हैया कुमार किसी परिचय के मोहताज हैं और न ही पप्पू यादव. कन्हैया आधिकारिक तौर पर कांग्रेसी हैं और पप्पू यादव ने खु

द को कांग्रेसी घोषित कर रखा है. इसके बावजूद जब बिहार की राजधानी पटना में प्रदर्शन करने के लिए राहुल गांधी पहुंचे तो उनके सुरक्षाकर्मियों ने इन दोनों को ही धकियाकर उस गाड़ी से उतार दिया, जिस पर राहुल सवार थे.

सवाल है कि क्यों. क्या वजह सिर्फ ये थी कि जिस गाड़ी पर राहुल गांधी सवार थे, उसपर खुद तेजस्वी यादव भी मौजूद थे. अब राहुल गांधी अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं. सियासी शब्दों में कहें तो कांग्रेस के आलाकमान हैं. और यही हाल तेजस्वी यादव का भी है. आरजेडी के आलाकमान तो वही हैं. और तेजस्वी से कन्हैया कुमार और पप्पू यादव, इन दोनों की अन-बन किसी से छिपी नहीं है.





याद करिए 2019 का लोकसभा चुनाव. तब कन्हैया सीपीआई में हुआ करते थे. बेगुसराय से उम्मीदवार भी थे. और सीपीआई का आरजेडी के साथ गठबंधन भी था. इसके बावजूद तेजस्वी यादव ने कन्हैया कुमार के खिलाफ उम्मीदवार दिया और नतीजा ये हुआ कि न कन्हैया जीते और न तेजस्वी के तनवीर हसन और बाजी मार ले गए गिरिराज सिंह.

कन्हैया के साथ सीधे तौर पर नहीं दिखे हैं तेजस्वी

ये तेजस्वी और कन्हैया के बीच के द्वंद्व का चरम था, जिसमें कन्हैया के कांग्रेसी बनने के बाद भी कोई कमी नहीं आई. न तेजस्वी कभी सीधे तौर पर कन्हैया के साथ दिखे और न ही कन्हैया कभी तेजस्वी की तारीफ करते नजर आए. लेकिन 2025 के चुनाव के लिए जो गठबंधन बना है, उसमें कन्हैया तेजस्वी पर नरम दिखे और जब मुख्यमंत्री चेहरे पर सवाल हुआ तो कन्हैया ने पिछले दिनों ही साफ कर दिया कि तेजस्वी यादव के चेहरे पर कोई भ्रम नहीं है.

इसके बावजूद जब 9 जुलाई को कन्हैया कुमार ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के लिए बनाए गए साझा रथ पर चढ़ने की कोशिश की तो उन्हें मायूसी ही हाथ लगी क्योंकि सुरक्षकर्मियों ने उन्हें फटकने तक नहीं दिया.

पप्पू यादव और लालू यादव की दोस्ती-दुश्मनी की कहानी जगजाहिर

पप्पू यादव के साथ भी यही हुआ. पप्पू यादव और लालू यादव की दोस्ती और दुश्मनी की कहानी जगजाहिर है. जब दोनों में दोस्ती थी तो पप्पू ने वो दोस्ती निभाई जिसकी मिसाल दी जाती है. और अब जब दुश्मन हैं तो तल्खी दिखती है, जिसमें दोस्ती की गुंजाइश बरकरार रहे. इसी गुंजाइश के लिए पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल भी हुए, टिकट की कोशिश भी की. और जब टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनाव जीतकर, तेजस्वी की उम्मीदवार बीमा भारती को हराकर सांसद बन गए और फिर से कांग्रेस के सुर में सुर मिलाने लगे. लेकिन शायद तेजस्वी से उनके सुर तो अभी नहीं ही मिल रहे हैं, तभी तो जब राहुल गांधी पटना पहुंचे तो उनकी गाड़ी पर से पप्पू यादव को भी उतार दिया गया.

अब कहने वाले कह सकते हैं कि जगह कम थी, लिहाजा बड़े नेता ही मौजूद थे या कुछ चुनिंदा लोगों की ही व्यवस्था हो सकती थी. लेकिन वीडियो इस बात की गवाही देने के लिए साक्ष्य के तौर पर मौजूद हैं, जिनमें साफ-साफ दिखता है कि उस गाड़ी पर वो लोग भी मौजूद हैं, जिन्हें आम तौर पर कोई पहचानता भी नहीं है और वो सुरक्षाकर्मी भी नहीं है.

तेजस्वी के साथ संबंधों को लेकर जोखिम नहीं ले सकते राहुल गांधी

ऐसे में घूम-फिरकर सवाल आ जाता है राहुल गांधी पर कि उनकी मौजूदगी में उनके दो बड़े नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार क्यों हुआ...क्या इसकी सिर्फ एक वजह है कि तेजस्वी यादव इन दोनों ही लोगों को व्यक्तिगत तौर पर पसंद नहीं करते हैं और राहुल गांधी बिहार में तेजस्वी के साथ अपने संबंधों को लेकर कोई जोखिम नहीं ले सकते हैं. क्या पहले कन्हैया और फिर पप्पू यादव को राहुल गांधी की गाड़ी से राहुल गांधी की सहमति से ही दूर रखा गया ताकि तेजस्वी नाराज न हों...और गठबंधन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े...

ये बहुत हद तक मुमकिन है कि एक बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए छोटी-छोटी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं. और कन्हैया-पप्पू को गाड़ी से दूर रखना कोई इतनी भी बड़ी बात नहीं है...लेकिन अगर ऐसा करना था, अगर यही होना था तो कन्हैया और पप्पू यादव को अकेले में समझाया जा सकता था, बताया जा सकता था, बड़ी लड़ाई के लिए समझौता करने को तैयार किया जा सकता था. वो मान भी जाते, उस गाड़ी के पास फटकते भी नहीं...भीड़ का बहाना भी बन ही जाता...और उनकी सार्वजनिक छवि को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. लेकिन गाड़ी के पास पहुंचकर भी वहां न पहुंच पाना और इस पूरे वाकये का वीडियो में कैद हो जाना कन्हैया कुमार और पप्पू यादव की राजनीति को बहुत हद तक कमजोर करेगा. दोनों नेता चाहे जो तर्क दें, अपने नेता के बचाव में चाहे जो सफाई पेश करें...लेकिन वो वीडियो तो गवाह हैं हीं और हमेशा ही रहेंगे.





























































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